गीत बनाया मैंने
प्रतियोगिता हेतु
गीत।।
चांद मेरी छत पर उतरा था उसको मीत बनाया मैंने।
दर्द तुम्हारा जिआ रात भर तब ये गीत बनाया मैंने।।
कल्पनाओं की मधुर उड़ाने तुम भी उड़ना चाह रहे थे।
प्रतिवंधों की डोर तोड़ कर शायद मुड़ना चाह रहे थे।।
मर्यादा की बेड़ी पग में हर पल राहें रोक रही थी।
मैं भी जुड़ना चाह रहा था तुम भी जुड़ना चाह रहे थे।।
तपन हृदय को विचलित करती लेकिन शीत बनाया मैंने।
दर्द तुम्हारा जिआ रात भर तब ये गीत बनाया मैंने।।
कुण्ठित आशाओं को मैंने जीते देखा मरते देखा।
पलक कोर पर आए मोती मैंने छुप कर पीते देखा।।
मुझे दिखा जीवन में कोई संसाधन की कमी नहीं थी।
भरे खजाने में भी मैंने प्रणय पंथ को रीते देखा।।
शबरी के झूठे बेरों को जीवन की रीत बनाया।
दर्द तुम्हारा जिआ रात भर तब ये गीत बनाया मैंने।।
विरह अनल की की तपन तुम्हारे उर में मैंने जलती देखी।
सागर से मिलने को व्याकुल सरिता एक मचलती देखी।।
पर दायित्व निर्वहन करना लगी तुम्हारी मजबूरी सी।
मैंने तुम्हें कल्पनाओं में खुद को खुद से छलती देखीं।।
तब जग की सारी ही खुशियों को कालातीत बनाया मैंने ।
दर्द तुम्हारा जिआ रात भर तब ये गीत बनाया मैंने।।
सुख की कल्पनाओं में जीवन बोझ समझ ढोना पड़ता है।
दुख में भी हसनां पड़ता है सुख में भी रोना पड़ता है।।
हम सच को झुठलाने वाले तर्क वितर्क किया करते हैं।
कुछ पाने की चाह में हमको कितना कुछ खोना पड़ता है।।
त्याग समर्पण देख तुम्हारा तुम्हें पुनीत बनाया मैंने।
दर्द तुम्हारा जिआ रात भर तब ये गीत बनाया मैंने।।
खुशबू सबको खुश करती है लेकिन खुद खुशबू आहत हैं।
खुशबू को खुशियां दूं सारी रावत यह मेरी चाहत है।।
दुख ही दुख का दामन थामे दुख ही दुख की बात सुने।
यह परिकल्पित दुख मत समझो यह तो केबल मेरा मत है।।
मीत तुम्हारा त्याग समर्पण जग की जीत बनाया मैंने।
दर्द तुम्हारा जिआ रात भर तब ये गीत बनाया मैंने।।
रचनाकार
भरत सिंह रावत भोपाल
Mahendra Bhatt
12-Feb-2023 12:36 PM
शानदार
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Priyanka06
09-Feb-2023 03:51 PM
बहुत ही बेहतरीन सृजन आदरणीय
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
09-Feb-2023 07:09 AM
Wahhhh wahhhh Bahut hi उम्दा सृजन लाजवाब गीत
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